जब हवा तेज़-तेज़ चलती थी
मेरे अंदर उमीद जलती थी
जान पड़ जाती ख़ुश्क दरिया में
बर्फ़ पर्वत की जब पिघलती थी
तब तअक़्क़ुब में साए होते थे
जब कभी रौशनी निकलती थी
चाँद सोता था ओढ़ कर बादल
चाँदनी करवटें बदलती थी
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