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जब समंदर में उतारू कश्तियाँ, मुझसे मिला कर - Zain Aalamgir

जब समंदर में उतारू कश्तियाँ, मुझसे मिला कर
तब परी-रू आए होगी मस्तियाँ, मुझसे मिला कर

समझु ईबादत नमाज़ें इश्क़ की पढ़ना हमेशा
वसवसे पाने तुझे कइ बस्तियाँ, मुझसे मिला कर

आज़मा अहबाब चल दिए, फ़िर सुकूत-ए-मर्ग सुन लूँ
रंज-ओ-ग़म जब बनेगी सिसकियाँ, मुझसे मिला कर

उज़्र समझे दर्द मेरा, क्या किसी से अब कहूँ मैं
मुतमइन बुत को सुनाउ कहानियाँ, मुझसे मिला कर

तुम कहे थे राज़दारी से दिलों में घर करोगे
यार दिखलाओ मुझे तुम यारियाँ, मुझसे मिला कर

इहतिराम किया 'फराज़-क़तील' के मोहब्बतों का
पर अलग है 'ज़ैन' की ख़ुश-फ़हमियाँ, मुझसे मिला कर

मैं चलू तन्हा, न लहरें पास मेरे आए सोचूँ
तिरि पसंदीदा ह' साझेदारियाँ, मुझसे मिला कर

तोड़ मुंसिफ़ जब क़लम तक़सीर-वारों को सजा दे
जब उड़ा ले चल रमक़ दुश्वारियाँ, मुझसे मिला कर

सुर्ख-रंगी आसमाँ हो जब खुले आँखें तिरी जो
बा'द रब तुझसे मिरी दिलदारियाँ, मुझसे मिला कर

औलिया बन गलतियाँ कर माफ़ सब इक मर्तबा तू
की सुख़न-वर 'ज़ैन' ने नादानियाँ, मुझसे मिला कर

- Zain Aalamgir

Kashti Shayari

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