हरा जो जख़्म है मेरा वहीं हर वार होता है
मोहब्बत है कि मंसूबा जो ये हर बार होता है
रक़ीबों से तेरा मिलना है लगता वार खंजर का
ये बस ज़ख़्मी नहीं करता ये दिल के पार होता है
ख़ुदा की बक्शी नेमत पर जो इतना सब है इतराते
नुमाइश जो नहीं करता वही फ़नकार होता है
दिवाली ईद मे पहले थे कैसे हम गले मिलते
अभी तो फेसबुक इंस्टा पे सब त्यौहार होता है
ये फ़नकारी का ओहदा है सिफ़ारिश से नहीं मिलता
ये कुर्सी उसकी होती है जो के हक़दार होता है
सितम करते है जो हमपर सितमगर वो सभी सुन ले
जो पानी सर से बढ़ता है तो फिर यलगार होता है
सहारा नाख़ुदा जिसका उसे है डूबने का डर
जो तैराकी मे अव्वल हो नदी के पार होता है
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