ठहर आँखों में जाना चाहता हूँ
नज़र हर पल मैं आना चाहता हूँ
तवाइफ़ से चुरा लाया हूँ घुँघरू
अमीरी को नचाना चाहता हूँ
बुरा इस वजह से लगता नहीं है
मैं रिश्ते को निभाना चाहता हूँ
मुझे गहराई उसकी देखनी है
मैं उसको वरग़लाना चाहता हूँ
कहीं पर भी मुझे दफ़ना न देना
मैं लफ़्ज़ों में समाना चाहता हूँ
As you were reading Shayari by Aatish Indori
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