उसको गर पहचाना होता तो उलझाव नहीं होता
वो तो दरिया था और दरिया में ठहराव नहीं होता
वो भरमाएगा उसकी यह फ़ितरत तो जग-जाहिर थी
मैं ख़ामोश अगर रह जाता तो टकराव नहीं होता
कोई वाजिब कारण होता तो उससे करता हुज्जत
साथ सफ़र करने वालों में क्या अलगाव नहीं होता
जिस्म तो इक जंगल है जिसमें अच्छे-अच्छे भटके हैं
रूह मिरी गर मंज़िल होती तो भटकाव नहीं होता
दिखने-विखने पर मत जाओ हम तो पागल-वागल थे
ऐसी बातों पर लड़ बैठे जिन का भाव नहीं होता
सबको ख़ुश रखने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी
हम दरियाओं से अच्छा फिर भी बरताव नहीं होता
एक अकेले तुम थोड़ी हो ग़लती सब से होती है
आगे लोग बढ़ेंगे वो जिन से दुहराव नहीं होता
Read Full