मुहब्बत की दुनिया बड़ी सख़्त दुनिया
बदलती है दुनिया ये कम-बख़्त दुनिया
यक़ीं भी करे दिल तो कैसे करेगा
जुनूनों पे हँसती यूँ यक-लख़्त दुनिया
मुसाफ़िर कहाँ का कहाँ पर रुकेगा
बताएगी कैसे ये बे-रख़्त दुनिया
शरीफ़ों का अंजाम अच्छा नहीं है
शरीफ़ों को डसती हया-लख़्त दुनिया
मगर कोई दुनिया को इतना न समझा
सजाएगी बस ताज और तख़्त दुनिया
As you were reading Shayari by Abhinav Srivastav
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