बदन-फ़रोश किसी दिन बदन को तरसेगा - Prashant Kumar

बदन-फ़रोश किसी दिन बदन को तरसेगा
पड़े-पड़े ही लहद में कफ़न को तरसेगा

हर एक चीज़ ज़मीं पर फ़नाइयत होगी
ये आफ़ताब भी इक दिन अगन को तरसेगा

अभी हुड़क न करे बोल दो ज़माने से
ये मेरे साथ किसी दिन चलन को तरसेगा

ये तो जनाब विधि का विधान है मैं क्या
हर एक शख्स ज़मीं पर मिलन को तरसेगा

तुम्हारे हुस्न के ढलने के भी दिन आएँगे
कफ़न-फ़रोश भी इक दिन कफ़न को तरसेगा

अगर ये ख़ून ख़राबा ही ऐसे चलता रहा
तो देख लेना तिरा मुल्क अमन को तरसेगा

तो क्या कि 'उम्र-ए-गुज़श्ता को हम भी तरसेंगे
तुम्हारा हुस्न भी तो बाँक़पन को तरसेगा

- Prashant Kumar
1 Like

More by Prashant Kumar

As you were reading Shayari by Prashant Kumar

Similar Writers

our suggestion based on Prashant Kumar

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari