भूख लगती है तो हर चाल-ओ-चलन बिकता है - Prashant Kumar

भूख लगती है तो हर चाल-ओ-चलन बिकता है
ख़ून बिकता है कभी पूरा बदन बिकता है

भूख की आड़ में जब कोई वतन बिकता है
तो ज़मीं साथ ख़ुदा नील-गगन बिकता है

गीत हो शेर हो या नज़्म-ओ-ग़ज़ल कुछ भी हो
हाल बिकता है तो हालात-ए-सुख़न बिकता है

जो तुम अंदर से हो बाहर से वही बनके रहो
याँ जो दिखता है वही माल-ए-वतन बिकता है

इन ग़रीबों से खरीदा भी न जाएगा अब
ये सुना है कि बड़ा महँगा कफ़न बिकता है

- Prashant Kumar
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