देख सबकी बदल रही चालें
बता किस हुस्न पे नज़र डालें
दिल की कक्षा में नाम लिखवा लें
मेरी तस्वीर उसमें लगवा लें
सब सुनेंगे उन्हीं की फिर पहले
एक दाना दराज़ में डालें
सभी की आस्तीन ख़ाली हैं
साँप हैं ही नहीं तो क्या पालें
अरे आराम से चलेंगे अब
ज़िंदगी रुक तो जा दवा खालें
कौन है आ गया है दिल जिस पर
रात में उसको घर से उठवालें
एक ही बात है तुम अपना लो
या मुझे ये रक़ीब अपना लें
अरे अमृत की बात करती हो
प्यार से दो तो ज़हर भी खा लें
As you were reading Shayari by Prashant Kumar
our suggestion based on Prashant Kumar
As you were reading undefined Shayari