तुम अगर न बेवफ़ा थे तो मुझी से प्यार करते - Prashant Kumar

तुम अगर न बेवफ़ा थे तो मुझी से प्यार करते
अरे शाम-ए-उम्र तक भी मिरा इंतिज़ार करते

न शब-ए-फ़िराक़ होती न विसाल-ए-यार करते
न निगाह वो मिलाते न हम ए'तिबार करते

न ख़िज़ाँ चमन में आती न सनम उजाड़ होता
कि हम इस क़दर कोई दिल न गुल-ए-बहार करते

लगी बद्दुआ सभी की रही देन सब तुम्हारी
न दुआ किसी को देते दिल-ए-बे-क़रार करते

कि हिसाब ज़िंदगी का तिरे हाथ अगर न होता
तो ग़म-ए-हयात से हम कोई रोज़गार करते

सग-ए-आस्ताँ ही बनकर कि निगाहबान रहता
तिरी शाम आख़िरी भी अरे यादगार करते

तिरी आस्ताँ पे कोई अगर इंतिज़ाम होता
तो शब-ए-जुदाई में हम अरे जाँ निसार करते

- Prashant Kumar
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