है आलम बेशऊरी का क़रीने छूट जाते हैं

  - Adesh Rathore

है आलम बेशऊरी का क़रीने छूट जाते हैं
मैं जब हासिल करूँ तारे दफ़ीने छूट जाते हैं

मैं पछताता हूॅं अपने फ़ैसलों पर जब कभी मुझसे
तेरे जैसों की चाहत में नगीने छूट जाते हैं

समुंदर जैसी आँखें हैं तिलिस्माती लब-ओ-लहजा
वो इक टक देखता है और सफ़ीने छूट जाते हैं

मेरे हमदम दिसंबर की नमी रातों में भी अक्सर
तुम्हारी याद आती है पसीने छूट जाते हैं

तुम्हारे साथ में बीते हुए लम्हों के साए में
अगर बैठा रहूॅं पल भर महीने छूट जाते हैं

चलूॅं जो साथ यारों के तो पीछे छूट जाता हूॅं
अगर आगे निकल जाऊँ कमीने छूट जाते हैं

  - Adesh Rathore

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