मौसम तो बदलता है बदल जाए तो क्या हो
फूलों से जो ख़ुश्बू भी निकल जाए तो क्या हो
जाता हूँ कड़ी धूप में परछाईं के हमराह
सहरा में ये परछाईं भी जल जाए तो क्या हो
ये मश्वरा-ए-ज़ब्त भी तस्लीम है लेकिन
आँसू मिरी आँखों से निकल जाए तो क्या हो
महताब सहारा है शब-ए-ज़ीस्त का 'फ़ाख़िर'
ये ज़र्द सा महताब भी ढल जाए तो क्या हो
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