थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में
बर्क़ चमकी है कहीं रात की गहराई में
बाग़ का बाग़ लहू रंग हुआ जाता है
वक़्त मसरूफ़ है कैसी चमन-आराई में
शहर वीरान हुए बहर बयाबान हुए
ख़ाक उड़ती है दर ओ दश्त की पहनाई में
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
उस तमाशे में नहीं देखने वाला कोई
इस तमाशे को जो बरपा है तमाशाई में
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