कहा जो राज़ तो बोले के खुल गया कहिए
ग़ज़ल में हो तो ज़रा दर्द भी दवा कहिए
कहाँ तलक ये ज़बाँ बाँध कर दुआ कहिए
अभी तो दिल भी नहीं टूटा जान क्या कहिए
नशे में हैं तो ये मत पूछिए इरादा क्या
बिना पिए भी जो बहके उसे बुरा कहिए
न था वो मौज में फिर भी बहा लिए हमको
अब उस सुकूँ को भी तूफ़ान-ए-बेवफ़ा कहिए
निगाह-ए-सख़्त से तोड़ा अगर किसी ने दिल
तो उनके नाम को फिर भी सदा-वफ़ा कहिए
अदू के हाथ में पत्थर थे और निगाहें भी
कहा गया जो वही था तो बुरा क्या कहिए
न ज़ख़्म दीजिए ऐसा कि दर्द गुम हो जाए
न तेग़-ए-बे-सबा को रहम की अदा कहिए
बचा रहा हूँ तअल्लुक़ को इस तरह जैसे
ख़ुदा के बाद कोई और आसरा कहिए
न पूछिए कि शिकायत कहाँ तलक पहुँची
जो झूठ सच से मिले उस को हादसा कहिए
हुनर यही है कि जो हँस के काट दे सदमे
उसी को दर्द में ढलती हुई अदा कहिए
मैं जिसको सोच रहा हूँ वो शख़्स तुम भी हो
मगर ज़रा ये बताओ इसे ख़ुदा कहिए
अजब है तौर-ए-सितम और फिर सिला भी नहीं
उसी ज़माने को फिर ज़ोर-ए-आज़मा कहिए
किया है ख़ुद को तबाही में बाख़ुशी महफ़ूज़
जो इश्क़ हो तो उसे इश्क़ का मज़ा कहिए
नहीं है हिज्र कोई बात यूँ भी जानने की
जुड़ें जो साँस में रुख़्सत तो फिर क़ज़ा कहिए
कभी लबों पे दुआ बन के बद्दुआ निकले
तो इस तअम्मुल-ए-नज़रों को बद्दुआ कहिए
नसीब का लिखा भी देव गर बदल न सके
तो अपनी हार को फिर जीत की दुआ कहिए।
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