हर्फ़ कहता हूँ कि आईना सवाल अच्छा है

  - Amit Nandan Dev

हर्फ़ कहता हूँ कि आईना सवाल अच्छा है
बेख़ुदी देखिए फिर भी ये ख़याल अच्छा है

लब तक आई थी सदा पर न सुनी जाएगी
ख़ून रो लीजिए अश्कों में मलाल अच्छा है

हिज्र में रात जो जलता है बुझा दो उसको
चाँद से कह दो कि अब माह-ए-ख़याल अच्छा है

देखिए क़िस्सा-ए-तक़्दीर कहाँ तक निकले
शम्अ जलती है मगर सुब्ह का हाल अच्छा है

नक़्श हर एक नज़र में है मगर फ़र्क से देख
कोई कहता है ग़लत कोई कहे हाल अच्छा है

किस से पूछे कि फ़लक टूटा कि आईना गिरा
हाथ उठते नहीं कहने को बवाल अच्छा है

आज इस दश्त में फिर रक़्स-ए-ग़माँ देखा है
गर्द उड़ती है मुक़द्दर का जवाल अच्छा है

राह भी शर्त थी मंज़िल भी ख़रीदी हमने
अब सफ़र सोचते हैं ग़म का विसाल अच्छा है

'देव' हर ज़ख़्म को आईना समझ कर हँस दे
अब जो टूटा है उसी का तो कमाल अच्छा है

  - Amit Nandan Dev

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