हर घड़ी बस इक तुझे ही देखना है सोचना है
हर घड़ी ये दिल मेरा तुझसे ही मिलने को फ़ना है
इल्तिजा है ये कि फिर से लौट आ तू पास मेरे
इक दफ़ा मुझको भी शहज़ादी तेरा दिल तोड़ना है
ख़ुश-नसीबी है कि सबके सामने है फ़ैसला अब
सच तुझे भी बोलना है सच मुझे भी बोलना है
कोई मुझको भी कहीं से ला दे अफ़्सूनी तराज़ू
कौन कितने साफ़ दिल का नापना है तौलना है
मेहरबानी सादगी रस्म-ए-वफ़ा नेकी शराफ़त
अब मुझे बेकार का ये सब झमेला छोड़ना है
क्या हया क्या शर्म पहला प्यार पूरा हो न पाया
दूसरा फिर तीसरा अब सबसे रिश्ता जोड़ना है
एक खिड़की से न होगी ज़िन्दगी रौशन मेरी अब
अब मुझे हर एक खिड़की पर का पर्दा खोलना है
मुझमें जो 'रेहान' है मुझको बिगड़ने ही न देगा
मुझमें जो 'रेहान' है उसका गला अब घोंटना है
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