वहम के काँटें हटाए तेरे मन से न गए
मिन्नतें की न गईं सर भी झुकाए न गए
रोकना चाहा न जब जा रही थी छोड़ के तू
देखता रह गया दो लफ़्ज़ भी बोले न गए
इक सितम है कि मोहब्बत से मुकरता मैं रहा
इक सितम ये कि मगर अश्क भी रोके न गए
रात भर दिल में जली याद की लौ यूॅं तेरी
सुब्ह फिर काँच के टुकड़े भी समेटे न गए
है वफ़ा यूॅं कि तेरे बाद भी ऐ जान-ए-जहाँ
फूल फेंके न गए ख़त तेरे फाड़े न गए
मेरी आँखों को यूॅं तड़पाया तेरे चेहरे ने जाँ
कि कभी आँखों से फिर ख़्वाब भी देखे न गए
राहें मैंने यूॅं चुनी ख़ुद की तबाही के लिए
पाँव छिलते रहे पर रास्ते बदले न गए
लिक्खा क्या कुछ न था शहज़ादी तेरे सज्दे में पर
बिन तेरे नज़्म भी 'रेहान' से लिक्खे न गए
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