राम सी सीरत कहाँ अब कृष्ण सी उल्फ़त कहाँ
सब फ़रेबी हैं किसी में अब कोई ग़ैरत कहाँ
प्रेमिका बेटी बहन बेशक सभी अच्छी हैं पर
माँ के जैसी इस जहाँ में कोई भी औरत कहाँ
डेढ़ दिन की ज़िन्दगी ने बस यही सिखलाया है
जुस्तुजू में जो मज़ा मंज़िल में वो इशरत कहाँ
साथ तेरे अब हर इक लम्हा गुज़रता है मेरा
तुझसे मिलने के लिए अब नींद से मिन्नत कहाँ
सब बुलाते हैं मुझे बे-वजह दीवाना तेरा
मेरी शोहरत भी सनम अब है मेरी शोहरत कहाँ
जो शिकस्त-ए-दिल से डर जाते हैं उनको क्या ख़बर
इज़्तिराब-ए-इश्क़ से बेहतर कोई लज़्ज़त कहाँ
हर दुआ में कल तलक माँगी थी बस ख़ुशियाँ तेरी
आज अचानक बद-दुआ दूँ मेरी ये फ़ितरत कहाँ
भूल से भी वस्ल की ग़ज़लें लिखी मैंने अगर
लोग समझेंगे कि अब 'रेहान' को ज़हमत कहाँ
Read Full