डूबा हुआ है वो इसी वहम-ओ-गुमान में

  - Ansar Etvii

डूबा हुआ है वो इसी वहम-ओ-गुमान में
रहता नहीं है कोई भी अब आसमान में

जब से सफ़र की राह में तक़सीम क्या हुआ
वीरानियाँ सी छा गईं उसके मकान में

शामिल नहीं था जो कभी दर्स-ए-निसाब में
इक रोज़ वो भी आया मेरे इम्तिहान में

मैं इसलिए भी पास से उठकर के आ गया
नफ़रत भरी हुई थी बस उसकी ज़बान में

  - Ansar Etvii

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