बाद गुज़रेगी क़यामत सी तेरे जाने के
ख़ून आँखों से बहेंगे तेरे दीवाने के
जुर्म तो कर चुके हो तुम कई हर्जाने के
बेवफ़ा तुम से बिछड़ कर नहीं मर जाने के
इश्क़ करना था किया, दिल ने चलाई अपनी
मशवरे रास न आए किसी फ़रज़ाने के
हो हक़ीक़त कि ख़यालों में, यही होता है
काटता रहता हूँ चक्कर मैं सनम-ख़ाने के
मुझसे देखे ही नहीं जाते किसी के आँसू
ख़्वाह अपनों के रहें या किसी बेगाने के
क्या ज़रूरी था? तेरा मुझ से जफ़ा करना ही
और भी लाख तरीक़े थे, बिछड़ जाने के
जिनको पीने का सलीका न पिलाने का शुऊर
हम को आदाब सिखाएँगेवो मय-ख़ाने के
ये बहारों की फ़ज़ाओं का असर है साहिल
जगमगा उट्ठे हैं ज़र्रात जो वीराने के
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