कोई लाख दर्जा भले ख़ूब रू हो
नहीं है ये मुमकिन नबी हू-ब-हू हो
हज़ारों तसव्वुर हो इक आरज़ू हो
जहाँ भर में जलवा तेरा चारसू हो
तेरे दर की हर शख़्स चाहे ज़ियारत
ज़माने में तेरी ही बस गुफ़्तगू हो
निगाहों पे आक़ा करम इतना कर दे
मैं देखूँ जिधर भी उधर तू ही तू हो
तेरी रहमतों की वो बारिश हो मुझ पर
कि ईमाँ का सब्ज़ा मेरा पुरनुमू हो
तुझे जब पुकारें मेरी चलती साँसें
बदन में मेरे तब ही कुछ हाव हू हो
करूँगा तेरे नाम पर ही मैं बैअत
भले लाख दुनिया ये मेरी उदू हो
ज़माने को दीं आशना करने वाले
बरोज़-ए-क़यामत तू ही ख़ैर ख़ू हो
वो दिल कम नहीं होता साहिल हरम से
जहाँ वस्ल-ए-महबूब की आरज़ू हो
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