हुस्न पर जान-ए-हया जब से ये दो तिल आए
हम शरीफ़ों की गली में नए क़ातिल आए
मेरी हस्ती में उतर जाए तू बन कर इक रूह
मेरी आँखों में तेरे इश्क़ की झिलमिल आए
दिल तो ये कहता है रस्ता हो अभी और तवील
पाँव ये कहते है अब सामने मंज़िल आए
हर क़साई यही चाहे है कटे मुर्ग़ा कोई
और वकीलों की ये ख़्वाहिश है मुवक्किल आए
आप तो छोड़िए मानी न किसी की अब तक
झूठ के हक़ में यहाँ और भी बातिल आए
अब अगर इश्क़ में मिट जाऊँ तो परवाह नहीं
अपने शौहर से कहो मेरे मुक़ाबिल आए
आप की कश्ती तो अब पार नहीं हो सकती
कैसे चरख़ाब से मिलने कोई साहिल आए
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