जो तिरे पाँव में छमक होती
दूर से ही मुझे भनक होती
ज़ाएक़ा इश्क़ का अलग होता
चाय जो इश्क़ में कड़क होती
और महसूस कुछ नहीं होता
आप छू लो वहाँ धड़क होती
दूर तुझसे कभी नहीं होता
पास घर के अगर सड़क होती
घर कभी भी नहीं जला होता
काश बातें तुझी तलक होती
यार कैसे करूँ यक़ीं तुझपे
देखते ही तुझे कसक होती
और फिर हड्डियाँ गला देतीं
जो मोहब्बत बनी सनक होती
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