ऐ ज़िंदगी ये क्या हुआ तू ही बता थोड़ा-बहुत
वो भी नाराज़ है मैं भी ख़फ़ा थोड़ा-बहुत
मंज़िल हमारी क्या हुई ये किस जहां में आ गए
अब सोचना पेशा हुआ कहना रहा थोड़ा-बहुत
ना-मेहरबां हर रास्ता और बेवफ़ा इक-इक गली
हम खो गए इस शहर में रस्ता मिला थोड़ा-बहुत
ये लुत्फ़ मुझ पर किसलिए एहसान का क्या फ़ायदा
अब वक़्त सारा कट चुका, अच्छा-बुरा, थोड़ा-बहुत
उस बज़्म से बावस्तगी क्या-क्या दिखाएगी नबील
फिर आ गए तुम हार कर जो कुछ भी था थोड़ा-बहुत
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