ये किस वहशत-ज़दा लम्हे में दाख़िल हो गए हैं
हम अपने आप के मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए हैं
कई चेहरे मिरी सोचों से ज़ाइल हो गए हैं
कई लहजे मिरे लहजे में शामिल हो गए हैं
ख़ुदा के नाम से तूफ़ान में कश्ती उतारी
भँवर जितने समुंदर में थे, साहिल हो गए हैं
वो कुछ पल जिन की ठंडी छाँव में तुम हो हमारे
वही कुछ पल तो जीवन भर का हासिल हो गए हैं
उलझते जा रहे हैं जुस्तुजू के पर मुसलसल
ज़मीं-ता-आसमाँ कितने मसाइल हो गए हैं!
'नबील' आवाज़ भी अपनी कहाँ थी मुद्दतों से
जो तुम आए तो हम यक-लख़्त महफ़िल हो गए हैं
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