मैं रोज़गारे मुहब्बत में कम पगार पे था
और इतनी कम कि ग़ज़ल का गुज़र उधार पे था
हमारा इश्क़ भी याराने की कगार पे था
जब उसने "प्यार" कहा था तो ज़ोर "यार" पे था
किसे ख़बर थी कि दरवाज़ा भी खुला हुआ है
सभी का ध्यान तो दीवार की दरार पे था
मुझे ख़रीदने दो तीन लोग आए थे
और उनमें से भी मेरा क़र्ज़ तीन-चार पे था
मैं जिस गुलाब की ख़ातिर था ख़ार की ज़द में
उसे भी मुझपे भरोसा नहीं था ख़ार पे था
बता रहा था अंधेरा बहुत है दुनिया में
वो इक चराग़ जो मंसूर के मज़ार पे था
हुआ था क़त्ल कल उसके किसी दिवाने का
ख़ुदा का शुक्र! कि इल्ज़ाम ख़ाकसार पे था
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