हस्ब-ए-दस्तूर दिल को सता तो सही
तू अदावत ही रख पर निभा तो सही
मुझको देखे पे ज़ुल्फ़ें सँवारे है क्यूँ
इश्क़ के क़ायदों को हटा तो सही
As you were reading Shayari by Dhiraj Singh 'Tahammul'
our suggestion based on Dhiraj Singh 'Tahammul'
As you were reading undefined Shayari