दिल नहीं है न दिल-लगी है अब
क्यूँ नज़र में ये बे-रुख़ी है अब
इश्क़ की बात थी मगर छोड़ो
इश्क़ की बात अन-कही है अब
दिल नहीं बोलता मेरा कुछ भी
ये ज़बाँ रोज़ बोलती है अब
थी मुझे इश्क़ की ज़रूरत पर
इश्क़ से रूह काँपती है अब
हिज्र की रात आ गई है फिर
अश्क बहना तो लाज़मी है अब
ख़ुद से ही दूर हो रहा हूँ मैं
क्या कहूँ क्यूँ ये बे-ख़ुदी है अब
लोग वादे न अब निभाते हैं
इश्क़ भी जैसे काग़ज़ी है अब
तू नहीं है यहाँ मगर फिर भी
तू मुझे रोज़ दिख रही है अब
मुस्कुराता नहीं है दिल 'रावत'
दिल बता क्यूँ ये बे-दिली है अब
As you were reading Shayari by Divyansh Rawat
our suggestion based on Divyansh Rawat
As you were reading undefined Shayari