शीशे के कार-ओ-बार में नुक़सान हो गया
दिल आशिक़ी में टूट के बे-जान हो गया
मैं हूँ तुम्हारी याद है बादल हैं अश्क हैं
फिर इक हसीन शाम का सामान हो गया
अब किस क़दर तवील है तारीकियों की रात
हर ख़्वाब-ए-नूर-ए-सुब्ह परेशान हो गया
भाती नहीं है सहन-ए-गुलिस्ताँ की रौनक़ें
मैं जब से मस्त-ए-रंग-ए-बयाबान हो गया
क़िस्मत का खेल है कि मसीहा मिला भी तो
वो मेरा दर्द जान के अनजान हो गया
हम-साए मुझसे नाम मिरा पूछते हैं अब
या'नी मैं अपने घर में ही मेहमान हो गया
इसमें फ़रेब भी है तकब्बुर भी शर भी है
होना था आदमी जिसे शैतान हो गया
उस हुस्न की तलाश में फिरती है ये निगाह
आईना जिसको देख के हैरान हो गया
'आतिश' किसी के ग़म ने ग़म-ए-जाँ भुलाया है
जीना हमारे वास्ते आसान हो गया
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