बदनसीबों के भी हिस्से में कभी है आया इश्क़
दूर से लगता रहा दरिया मगर था सहरा इश्क़
इस ज़माने की मुहब्बत में ही उलझा है ये दिल
इस ज़माने की तरह ही हो गया है कब का इश्क़
इसको पाने की भी उज़रत अब चुकाई दुनिया ने
इस बदन की क़ैद से ही तो रिहा है करता इश्क़
हम तो सजदे में भी बस उसके ही अब तो रहते हैं
अब ये भी कैसी क़यामत है या मौला तौबा इश्क़
अब कहाँ कोई दिवाना होता उसके इश्क़ में
अब तो यूँ ही रह गया है जैसे कोई क़िस्सा इश्क़
काम तो ये सब फ़रेबों वाला है जाँ मेरी और
तुम तो अच्छे ख़ासे हो फिर तुम नहीं ये करना इश्क़
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