ये आखरी सदा है मेरी हर सदा के बाद
इक इब्तेदा भी होती है हर इन्तेहा के बाद
औज-ए-सुरय्या तुझपे भी होंगे किसी के पाँव
क्या तूने ये भी सोचा था तेरी बिना के बाद ?
पहले गंवाया दस्त-ए-हुनर फिर हुनर गया
पास एक्लव्य क्या है गुरु दक्षिणा के बाद ?
डर उससे आसमाँ में जो होने लगा है अब
इक फैसला कहीं तेरी जोर-ओ-जफा के बाद
कर तो रहे हैं आप मुझे अनसुना मगर
मैं जानता हूँ होगा जो सौत-ओ-सदा के बाद
तहतुस्सरा तो ले के चला है मुझे जुनूँ
पर मैं ये सोचता हूँ कि तहतुस्सरा के बाद ?
बाद-ए-सबा से क़ब्ल था "जानी" भी होशियार
उस से ना पूछ क्या हुआ बाद-ए-सबा के बाद
As you were reading Shayari by Jaani Lakhnavi
our suggestion based on Jaani Lakhnavi
As you were reading undefined Shayari