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वहशत की ज़द में तन्हा परवाज़ कर रहे हैं  - Jaani Lakhnavi

वहशत की ज़द में तन्हा परवाज़ कर रहे हैं
हम उसको खो के किस्मत पर नाज़ कर रहे हैं

जिसको समझ रहे हैं अंजामे दास्ताँ सब
हम उस जगह से अपना आग़ाज़ कर रहे हैं

अपनी समाअतों से खुद भागते हुवे हम
तन्हाई में भी कितनी आवाज़ कर रहे हैं

हैरान इस क़दर भी हमपर न हों खुदारा
एक शक़्स बच गया है नाराज़ कर रहे हैं

तस्वीरे ना रसा को दीवार करने वाले,
निस्बत से आपकी शय मुमताज़ कर रहे हैं

'जानी' पे तबसिरे का मौका दिया गया है
दीवार ओ दर मुसलसल आवाज़ कर रहे हैं

- Jaani Lakhnavi

Tanhai Shayari

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