वहशत की ज़द में तन्हा परवाज़ कर रहे हैं
हम उसको खो के किस्मत पर नाज़ कर रहे हैं
जिसको समझ रहे हैं अंजामे दास्ताँ सब
हम उस जगह से अपना आग़ाज़ कर रहे हैं
अपनी समाअतों से खुद भागते हुवे हम
तन्हाई में भी कितनी आवाज़ कर रहे हैं
हैरान इस क़दर भी हमपर न हों खुदारा
एक शक़्स बच गया है नाराज़ कर रहे हैं
तस्वीरे ना रसा को दीवार करने वाले,
निस्बत से आपकी शय मुमताज़ कर रहे हैं
'जानी' पे तबसिरे का मौका दिया गया है
दीवार ओ दर मुसलसल आवाज़ कर रहे हैं
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