दिल-ए-ग़रीब को नाशाद कर के रोया जाए
कोई नहीं है जिसे याद कर के रोया जाए
अमीर-ए-शहर के बस का नहीं हमारा सवाल
किसी फ़क़ीर से फरियाद कर के रोया जाए
सुतून-ए-अर्श है लर्ज़ा किसी की आहों से
ख़राब-हालों उसे शाद कर के रोया जाए
किसी को देख के हँसने से लाख बेहतर है
किसी के दुख में कुछ इमदाद कर के रोया जाए
ये कोह-ए-ज़ीस्त फ़क़त आँसुओं से पिघलेगा
सो अपने अज़्म को फरहाद कर के रोया जाए
सबब नहीं है कोई आह-ओ-सीना-कूबी का
सबब नहीं है तो ईजाद कर के रोया जाए
वो हादसा मेरी आँखों को ख़ुश्क कर गया था
उसी को आज न क्यूँ याद कर के रोया जाए
नज़र में सुर्ख़ ज़मीं है लहू है लाशें हैं
सो शहर-ए-क़ल्ब को बग़दाद कर के रोया जाए
ख़ुदा करे मेरी शादाबियत मरे किसी शब
ख़ुदा करे मुझे शबज़ाद कर के रोया जाए
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