दे गई आशिक़ी आपकी काफ़िला
आज है काफ़िरों में हुआ दाख़िला
आज साक़ी करें ग़म-ग़लत साथ में
लत लगी आँख की काँच से मत पिला
पूछता पूछिए पूछना आपका
महज़ है जान पहचान या सिलसिला
तोड़कर छोड़िए छोड़कर तोड़िए
दिल ये अब आपका है हमें क्या गिला
देखिए हो रहा आज 'माही' धुआँ
जल रहा दिल कि जैसे जले कोइला
As you were reading Shayari by Karal 'Maahi'
our suggestion based on Karal 'Maahi'
As you were reading undefined Shayari