इस क़दर ज़िंदगी के सताए हुए

  - Priya omar

इस क़दर ज़िंदगी के सताए हुए
मौत को छोड़ अब सब पराए हुए

लो सजा ली है फिर से लबों पर हँसी
और सीने में ग़म भी दबाए हुए

बेवफ़ाई से उसका हुआ राब्ता
और हम थे कि रिश्ता बनाए हुए

कैसे आसेब में ज़िन्दगी की गुज़र
आस के दीप देखे बुझाए हुए

दूरियाँ कितनी हों भूलता ही नहीं
यूँ रखा दिल से उसको लगाए हुए

दर्द मिलता रहा बेतहाशा 'प्रिया '
और लेते रहे सर झुकाए हुए

  - Priya omar

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