बेचैन थी लहरें समंदर की अभी तूफ़ान से
हम देखते थे दूर साहिल पर खड़े हैरान से
साँसे महकती हैं अगर मैं यूँ मिलूँ उससे कभी
जैसे हवा मिल के महकती ही रहे लोबान से
मैं राह का पत्थर बनी वो देव मूरत हो गया
कुछ भी नहीं है फ़र्क़ दोनों रह गए बेजान से
दिल एक तरफ़ा इश्क़ की मुश्किल समझता ही नहीं
हैं रास्ते जो इश्क़ के होते नहीं आसान से
मौसम बदलते ही उड़े जो शाख़ से वो हैं कहाँ
लौटे नहीं वापस परिन्दें , हैं शज़र वीरान से
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