बेचैन थी लहरें समंदर की अभी तूफ़ान से

  - Meenakshi Masoom

बेचैन थी लहरें समंदर की अभी तूफ़ान से
हम देखते थे दूर साहिल पर खड़े हैरान से

साँसे महकती हैं अगर मैं यूँ मिलूँ उससे कभी
जैसे हवा मिल के महकती ही रहे लोबान से

मैं राह का पत्थर बनी वो देव मूरत हो गया
कुछ भी नहीं है फ़र्क़ दोनों रह गए बेजान से

दिल एक तरफ़ा इश्क़ की मुश्किल समझता ही नहीं
हैं रास्ते जो इश्क़ के होते नहीं आसान से

मौसम बदलते ही उड़े जो शाख़ से वो हैं कहाँ
लौटे नहीं वापस परिन्दें , हैं शज़र वीरान से

  - Meenakshi Masoom

More by Meenakshi Masoom

As you were reading Shayari by Meenakshi Masoom

Similar Writers

our suggestion based on Meenakshi Masoom

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari