दफ़्न अपनी मिट्टी में होना था मुझे
एक दिन अपनी तरह लगना था मुझे
चल पड़ा मैं थाम कर उसका हाथ फिर
दूर जिसकी छाॅंव से जाना था मुझे
बाग़बाॅं हैरान था ख़ुद ये देखकर
सोच कितना और मुर्झाना था मुझे
ज़ख़्म ताज़ा है अभी भी वो जिस्म पे
राब्ता ख़ुद से नहीं रखना था मुझे
मर गया अंकुर जवानी में इसलिए
सौदा दोनों आँखों का करना था मुझे
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