एक क़तरा भी तुझको मयस्सर नहीं
आसमाँ पे अगर तेरा जो घर नहीं
ख़ामखा ज़िंदगी ज़िंदगी करता है
क्या तुझे मौत का कोई अब डर नहीं
उम्र भर ख़त्म होती नहीं दौड़ ये
तूने शायद कभी देखा अंबर नहीं
छोड़ दे अब तो तिल तिल तू मरना यहाँ
अब तो तुझको किसी का कोई डर नहीं
जान जानी है तो जाएगी ही बशर
जो बना तू अगर तेरा सरवर नहीं
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