ख़ाली कमरा रौशनी दीवार से
मैं भी डरता हूँ फ़िराक़-ए-यार से
बेवफ़ा कह तो दिया सबने मगर
हाल कोई पूछे इस बीमार से
बोतलो में बंद है क़िस्मत मिरी
रंज है मुझको मिरी तलवार से
मुद्दतों से क़ैद हूँ मैं ख़ुद में ही
लग रही है चोट क़ल्ब-ए-ज़ार से
शौक़ था जानाँ कभी मुझको भी पर
थक गया हूँ अब मैं भी इस प्यार से
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