रख लिया हथियार इक तैयार कर के
मार देंगे पर मुझे बीमार कर के
कश्तियों की बस्तियों में क्या रुके हम
डूबने वाले हैं दरिया पार कर के
मौत के सामान को पूजा करूँगा
ज़िंदगी दे दूँगा ख़ुद को मार कर के
आदमी की ज़ात से डरने लगा हूँ
ये मुझे जो खा रहे हैं प्यार कर के
हम कि जो नुक़्सान झेले जा रहे हैं
क्या करेंगे इश्क़ का व्यापार कर के
पर्वतों को ज़ख़्म गहरे दे दिए हैं
पानियों से पत्थरों पर वार कर के
मौत की चाहत को ज़िंदा कर लिया क्या
एक इस मरघट को यूँ घर-बार कर के
अब ज़मीं पे आ गया पागल परिंदा
ख़्वाब जो देखे थे वो दो चार कर के
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