sahib-e-mehr-o-wafa arz-o-sama kyun chup hai
ham pe to waqt ke pahre hain khuda kyun chup hai
be-sabab gham mein sulagna meri aadat hi sahi
saaz khaamosh hai kyun shola-nava kyun chup hai
phool to sahm gaye dast-e-karam se dam-e-subh
gungunaati hui aawaara saba kyun chup hai
khatm hoga na kabhi silsila-e-ahl-e-wafa
soch ai daavar-e-maqtal ye fazaa kyun chup hai
mujh pe taari hai rah-e-ishq ki aasooda thakan
tujh pe kya guzri mere chaand bata kyun chup hai
jaanne waale to sab jaan gaye honge aleem
ek muddat se tira zehn-e-rasa kyun chup hai
साहिब-ए-मेहर-ओ-वफ़ा अर्ज़-ओ-समा क्यूँ चुप है
हम पे तो वक़्त के पहरे हैं ख़ुदा क्यूँ चुप है
बे-सबब ग़म में सुलगना मिरी आदत ही सही
साज़ ख़ामोश है क्यूँ शोला-नवा क्यूँ चुप है
फूल तो सहम गए दस्त-ए-करम से दम-ए-सुब्ह
गुनगुनाती हुई आवारा सबा क्यूँ चुप है
ख़त्म होगा न कभी सिलसिला-ए-अहल-ए-वफ़ा
सोच ऐ दावर-ए-मक़्तल ये फ़ज़ा क्यूँ चुप है
मुझ पे तारी है रह-ए-इश्क़ की आसूदा थकन
तुझ पे क्या गुज़री मिरे चाँद बता क्यूँ चुप है
जानने वाले तो सब जान गए होंगे 'अलीम'
एक मुद्दत से तिरा ज़ेहन-ए-रसा क्यूँ चुप है
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