सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है
वो रोज़ा तो नहीं रखता पर इफ्तारी समझता है
मैं साँसें तक लुटा सकता हूँ उसके एक इशारे पर
मगर वो मेरे हर वादे को सरकारी समझता है
कसीदा किस तरह लिखना कसीदा किस तरह पढ़ना
वो कुछ समझे ना समझे रागदरबारी समझता है
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Rahat Indori
our suggestion based on Rahat Indori
As you were reading Politics Shayari