एक ही धुन में दिन-ओ-रात जिया करता है
दिल के लुटने का तू मातम ही किया करता है
एक नाकाम मुहब्बत में बिखरने वाले
रिंद क्या एक ही बोतल से पिया करता है
इक मुहब्बत ने तेरे कर दिए टुकड़े टुकड़े
असली आशिक़ तो जफ़ाओं में जिया करता है
घर में अब कुछ नहीं है बेचने को ऐ साक़ी
ऐसा ग्राहक दे कि जो ख़्वाब लिया करता है
जिस तरह तुमने मेरे शेर पे मुस्काया है
यार बैठा हो तो हर शख़्स किया करता है
शाम होती है तो बे-कैफ़ से हो जाते हो
फूल को देख लो काँटों में जिया करता है
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