आदत है अपनी मयकशी हमको पिलाइए
थोड़ी सी है ये ज़िन्दगी हमको पिलाइए
जो मयकदे में आये हैं सब भूल जाएँ हम
अब छोड़िए जी दुश्मनी हमको पिलाइए
है मय- कदा दर - ए - ख़ुदा पीना नमाज़ है
अपनी यही है बंदगी हमको पिलाइए
तारे ख़फ़ा ख़फ़ा से हैं रूठा है चाँद भी
चुभने लगी है चाँदनी हमको पिलाइए
आदत पड़ी हमारे लबों को मिठास की
लब पे लगा के चाशनी हमको पिलाइए
गुज़रा कोई जनाज़ा किसी मयकदे से जब
देने लगा सदा यही हमको पिलाइए
उल्फ़त हो या शराब मिलावट नहीं भली
भाती है दिल को सादगी हमको पिलाइए
वो आँख क्या ख़फ़ा हुई दुनिया खफ़ा लगे
होती नहीं है शाइरी हमको पिलाइए
हर बाज़ी आप की हुई अब जश्न हो ज़रा
हमने भी हार मान ली हमको पिलाइए
सहरा में भी "मलक" फिरे दरिया में भी रहे
लेकिन बुझी न तिश्नगी हमको पिलाइए
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