लोग मुनहमिक होंगे जब भी आबगीने में
ग़लतियाँ निकालेंगे उम्र भर नगीने में
तू कहाँ तलक मुझको साथ ले चलेगा दोस्त
ग़म ये आ नहीं सकते सब तिरे सफ़ीने में
फ़रवरी के आने से याद मुझको आया है
पिछले साल बिछड़ी थी वो इसी महीने में
साँस आती है ऐसे जैसे करती हो एहसान
फाँस बनके चुभती है याद उसकी सीने में
ज़ुल्म वो उठाए जो थे नहीं उठाने के
बात पी गई वो जो थी नहीं जो पीने में
As you were reading Shayari by Sagar Sahab Badayuni
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