रुसवा हुई वो जाने लगी जब मज़ार से
चीखें मिरी थी आने लगीं हर दरार से
सोचा रहें गे हम कभी आग़ोश ए यार में
दिल ये कभी लगा ही न दार-ओ-मदार से
कुछ इसलिए तरसते रहे प्यार के लिए
किसमत में मौत लिक्खी है बेबाक प्यार से
हम बद नसीब लोग हैं हमको सज़ा मिली
वो क़त्ल करके दिल मिरा रहती करार से
सागर सुखा दिया है तिरे इंतिज़ार में
आया नहीं तू देख ने इक दिन भी प्यार से
As you were reading Shayari by Sagar Sahab Badayuni
our suggestion based on Sagar Sahab Badayuni
As you were reading undefined Shayari