रुसवा हुई वो जाने लगी जब मज़ार से

  - Sagar Sahab Badayuni

रुसवा हुई वो जाने लगी जब मज़ार से
चीखें मिरी थी आने लगीं हर दरार से

सोचा रहें गे हम कभी आग़ोश ए यार में
दिल ये कभी लगा ही न दार-ओ-मदार से

कुछ इसलिए तरसते रहे प्यार के लिए
किसमत में मौत लिक्खी है बेबाक प्यार से

हम बद नसीब लोग हैं हमको सज़ा मिली
वो क़त्ल करके दिल मिरा रहती करार से

सागर सुखा दिया है तिरे इंतिज़ार में
आया नहीं तू देख ने इक दिन भी प्यार से

  - Sagar Sahab Badayuni

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