बची जो ज़िंदगी अपनी बिताई ही नहीं हमने
लगी जो आग सपनों को बुझाई ही नहीं हमने
मिरा भी नाम दौलतमंद में शामिल कभी होता
गिरा कर जो मिले शोहरत कमाई ही नहीं हमने
दिखाते ही रहे हम 'उम्र-भर सबको ख़ुशी अपनी
मिटा दी जो गई हस्ती दिखाई ही नहीं हमने
जलाई है किसी की लाश जब से हाथ से अपने
रही तस्वीर चेहरे पर मिटाई ही नहीं हमने
बिठा ली है उदासी से भरी तस्वीर इस दिल में
कभी तस्वीर फिर कोई लगाई ही नहीं हमने
बचा ली ज़िंदगी से हार कर इक रोज़ ख़ामोशी
उदासी ही बची अपनी जलाई ही नहीं हमने
ग़ज़ल में उम्र भर तुम ख़ून ही लिखते रहे सागर
ग़ज़ल वो आख़िरी उनको सुनाई ही नहीं हमने
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