महल ख्वाबों खयालों का बनाकर भी दिखाना है
अगर सोचा गया है तो सजाकर भी दिखाना है
हमेशा खुद-ब-खुद लड़कर वही खुद मान जाती है
कभी रूठे अगर तो फिर मनाकर भी दिखाना है
जिधर जाऊं उधर करती मिरा पीछा रकीबा वो
अगर हो सामना तो आजमाकर भी दिखाना है
न हासिल है यहां जी कर अगर उसकी मुहब्बत फिर
मरूं तो ख़ाक में खुद को मिलाकर भी दिखाना है
उमर गुजरी हमारी दिल लगी करते हुए बरबस
तो संजीदा हो दौ पैसा कमाकर भी दिखाना है
"शफ़क़" तुम हर दफा,हर वक्त जाते हो उसे मिलने
मुहब्बत में उसे मिलने बुलाकर भी दिखाना है
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