हम अगर वक़्त पे जो मर जाते
कितने ही हादसे ठहर जाते
होते ईसा अगर अभी मौजूद
देख कर ज़ख्म मेरे डर जाते
काश वो इंतज़ार में रहता
काश दफ़्तर से हम भी घर जाते
'जौन' का शेर बस सुना देता
जान कुरबान उस पे कर जाते
"शाद" तुम छोड़कर गली उसकी
जान, जाते भी तो किधर जाते ?
क़ैस तो दश्त तक भी जा निकले
"शाद" तुम रास्ते में मर जाते
As you were reading Shayari by Shaad Imran
our suggestion based on Shaad Imran
As you were reading undefined Shayari