तेरे आगे कोई सूरत न चले
मेरी दिल पे कोई हिम्मत न चले
कभी तुम भी तो मुझ पे ग़ज़ल लिखो
यूँ एक तरफ़ा तो उल्फ़त न चले
सुना हो जाएगी वो नीस्त-नाबुद
नबी के क़दमों पे जो उम्मत न चले
जिश्त उसकी राएगाँ ही गई
गाम जिसके रह-ए-मोहब्बत न चले
हाय तेरे दौर का भी इश्क़ 'शाद'
वाट्सऐप चले है पर ख़त न चले
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